हिमाचल प्रदेश के
शिमला में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया है। बताया जा रहा है
कि शिमला जिले के एक गांव में तथाकथित ऊंची जाति वालों के घर में घुसने पर एक 12
वर्षीय अनुसूचित जाति के बच्चे को गौशाला में बंधक बना लिया और बुरी तरह पिटाई की,
जिससे आहत होकर मासूम बच्चे ने आत्महत्या कर ली।
अधिकारियों ने जानकारी देते हुए बताया कि लड़के के पिता ने
शिकायत दर्ज कराई है कि उन्होंने 16 सितंबर की शाम को अपने बेटे को बिस्तर पर बेहोश पाया। जिसके
बाद वो अपने बेटे को रोहड़ू के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए, जहां से उसे शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी)
रेफर कर दिया गया, लेकिन इलाज के दौरान बच्चे की मौत हो गई। डॉक्टरों ने जानकारी
दी कि बच्चे की मौत जहरीला पदार्थ खाने से हुई है।
मृतक बच्चे की मां ने बताया कि उनका बेटा खेलते-खेलते गलती
से तथाकथित ऊंची जाति वालों के घर में चला गया था, जिससे नाराज होकर उस परिवार की तीन
महिलाओं ने उसे परेशान किया और गौशाला में बंधक बनाकर पिटाई की। बच्चे के पिता ने बताया कि
इन तीनों महिलाओं ने बच्चे को बंधक बना लिया और कहा कि उनके लड़के ने घर को "अपवित्र"
कर दिया है इसलिए सजा के तौर पर उन्हे एक बकरी देनी होगी। उन्होंने बताया कि इस
घटना से बच्चे के कोमल मन पर इतना बुरा प्रभाव पड़ा कि उसने आहत होकर कोई जहरीला
पदार्थ खा लिया, जिससे उसकी मौत हो गई।
पुलिस ने बताया कि आरोपी महिलाओं के खिलाफ मामला दर्ज कर
लिया गया है, जिन्हें स्थानीय अदालत से अग्रिम जमानत मिल गई है। इस
घटना से स्थानीय लोगों में बहुत आक्रोश है, दलित शोषण मुक्ति मंच (डीएसएमएम) ने
घटना की कड़ी निंदा करते हुए पुलिस से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार
निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग की
है। डीएसएमएम ने चेताया कि अगर आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई तो जन
आंदोलन शुरू किया जाएगा।
दलित शोषण मुक्ति मंच का कहना है कि अगर ये मामला एससीएसटी एक्ट के तहत दर्ज किया गया होता तो आरोपियों को जमानत नहीं मिलती, एससी,एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज न करके पुलिस ने भी अपनी जाति पोषक मानसिकता का परिचय दिया है।