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दिल्ली के आर्यभट्ट कॉलेज में अंबेडकरवादी लेखक संघ ने किया काव्य गोष्ठी का आयोजन

अंबेडकरवादी लेखक संघ और आर्यभट्ट कॉलेज, दिल्ली के हिंदी विभाग की तरफ से संयुक्त रूप से काव्य गोष्ठी का आयोजन दिनांक 18 अक्टूबर 2022 को आर्यभट्ट महाविद्यालय के सभागार में किया गया। कार्यक्रम का संचालन मामंचद सागर और नियती राठौड़ ने बहुत ही बेहतरीन ढंग से किया तथा कार्यक्रम में शामिल सभी कवियों,वक्ताओं, श्रोताओं तथा अन्य सदस्यों का स्वागत किया।  

अंबेडकरवादी लेखक संघ के अध्यक्ष डॉ. बलराज सिहमार जी ने अलेस के दृष्टिकोण को सभी के साथ साझा किया । उन्होंने कहा कि अंबेडकरवादी लेखक संघ समाज में हाशिये के समुदायों के मुद्दों, सवाल को ,रचनाओं द्वारा कार्यक्रमों में उठाने के लिए प्रतिबद्ध है। साथ ही नये रचनाकारों को भी मंच प्रदान करता है । डॉ. बलराज ने दलित साहित्य महोत्सव के विषय में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा पहला और द्वितीय दलित साहित्य महोत्सव अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुका है। अंबेडकरवादी लेखक संघ द्वारा यह आयोजन लगातार दो वर्ष हुआ, पिछले वर्षों में करोना महामारी के चलते यह कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। उन्होंने कहा कि भविष्य को लेकर अलेस के कई दूरगामी कार्यक्रम नियोजित हैं जिस कड़ी में यह काव्य गोष्ठी शुरुआत भर है।  

कार्यक्रम का प्रारंभ आर्यभट्ट महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. मनोज सिन्हा के वक्तव्य से हुआ। उन्होंने फिल्म आखिरी रास्ता का जिक्र करते हुए समाज को देखने के दो नजरियों की बात की। समाज को देखने का सबका नजरिया सबके सीखने का मौका है। उन्होंने कहा कि समाज आगे भी बढ़ाता है और पीछे भी ढकेलता है। मंच संचालन कर रही नियती राठौड़ ने प्राचार्य महोदय का धन्यवाद किया । काव्य गोष्ठी का विषय ‘कविता और सामाजिक न्याय’ था जिसकी अध्यक्षता इग्नू में अंग्रेजी भाषा के प्रो. प्रमोद कुमार तथा दिल्ली यूनिवर्सिटी से डॉ. सरोज कुमारी ने की। सबसे पहले आर्यभट्ट महाविद्यालय की पूर्व छात्रा पूजा ने स्वरचित कविता का पाठ किया। पूजा की कविताएं स्त्री स्वंतत्रता के प्रश्न खड़ी करती हुई दिखी तथा अपने लिए खुले आसमां में उड़ने की चाह उनकी जोशीली प्रस्तुत में साफ नज़र आई।  

स्वंतत्र लेखिका के रूप में अपनी जगह बनाती कवयित्री दामिनी यादव लगातार समसामयिक मुद्दों पर बड़ी ही बेबाकी से लिख रही हैं। दामिनी की कलम जितने मारक और कठोर है स्वर उतना ही घातक। स्त्री लेखिकाओं में वे अपने विषय और लहजे के लिए अपनी अलग पहचान बनाती हुए दिख रही हैं। जलने दो चिताएं यहां से वहां तक से काव्य पाठ की शुरुआत करते हुए  बिकी हुई एक कलम कविता तक, राजनीति में बढ़ते पूंजीवाद और पूंजीवाद में राजनीति के हस्तक्षेप को दिखाती है। अपने आस-पास के माहौल और उससे उपजे अवसरवादी मानसिकता पर भी उनकी रचनाएं प्रकाश डालती हैं। काव्य पाठ की इस कड़ी में अभिषेक, लालबाबू, दिलीप कुमार, अशोक बंजारा, आरती रानी प्रजापति जैसे युवा रचनाकारों ने स्त्रियों को केन्द्र में रख कविता लिखी जिससे उनके स्त्रियों के प्रति संवेदनशील और मानवतावादी विचारों को एक मंच मिला। सभी छात्रों ने अंबेडकरवादी लेखक संघ का भी आभार व्यक्त किया जिन्होंने उन्हें काव्य पाठ में शामिल होने का अवसर दिया। अभिषेक ने स्त्री हूं लड़ सकती हूँ, अशोक बंजारा की हकदार, बड़ा सच तथा लालबाबू की रचना दिखावट, कोई खास नहीं, रचनाओं के साथ काव्य प्रस्तुत दी। आरती रानी प्रजापति ने स्त्री स्वतंत्रता, जातिवादी मानसिकता तथा धार्मिक कर्मकांड पर उंगली करती हुई रचनाएं प्रस्तुत की। उनकी वह डरती रही कविता वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी होते अत्याचार के खिलाफ संघर्ष की कविता है जो निराशा से आशा, अंधेरे से उजाले और अज्ञान से ज्ञान की ओर लेकर जाती दिखती है।  

कार्यक्रम में शामिल वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता पुष्पा विवेक ने भी मंच से सभी का अभिनंदन किया तथा स्त्री केन्द्रित कविता का पाठ किया। औरत कमजोर नहीं रचना व्यवस्था पर सवाल करती हुई लिंग भेद, ऑनर किलिंग, जैसे संवेदनशील मुद्दों पर कटाक्ष करती है। 21 वीं सदी के भारत में आज भी शहरों से कुछ ही किलोमीटर दूर जाकर हम ऐसी रूढिवादी और अमानवीय व्यवस्था से मुखातिब हो रहे हैं जो हमारे आधुनिक होने का लगातार मखौल उड़ा रही है। सत्य नारायण जी ने कविता के महत्व को बताते हुए एक गीत की प्रस्तुति दी। बहुत ही सुंदर गायन शैली में प्रस्तुत रचना।  

वरिष्ठ कवि सुदेश तंवर ने छोटी-छोटी कविताओं से अपनी काव्य प्रस्तुति दी तथा  अंबेडकर जैसी लंबी कविता के साथ काव्य पाठ की समाप्त की। यह कविता अंबेडकर के विचारों को आज के समय और युवाओं के साथ सांझा करती है। घर वापसी कविता मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली रचना है जिसमें समानता, स्वंतत्रता और बंधुत्व की वैचारिकी साफ नज़र आती है। अपनी रचनाओं के साथ इस काव्य गोष्ठी से डॉ.रेखा वर्मा भी जुड़ी। उन्होंने जय भीम जय भारत के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की। कविता चुपचाप बोलो परंपरागत सामाजिक रीति-रिवाजों का बहिष्कार करती है तथा अंधेरे से उजाले तक में वे अपनों द्वारा हुए शोषण को प्रस्तुत करती है, वे कहती हैं जैसे ही खुश होकर मुस्कराती हूं। अंधेरे के गर्त में वापस खींच लेते हैं वे इस रचना के माध्यम से समाज की आँख में बंधी परिवार की मोह की पट्टी को भी उतारती हैं।  

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए संचाक नियती ने अलेस अध्यक्ष डॉ. बलराज को मंच पर आमंत्रित किया। डॉ.बलराज सिहमार ने अपनी कविताओं में अंबेडकरवादी विचारधारा को प्रमुखता से जगह दी जिनमें तिरस्कार मनुवाद तथा बिगडैल लड़की शामिल थी। बिगडैल लड़की कविता की चंद लाइनें-

कहते हैं समाज में/बिगडैल है / ये लड़की / बहस में / जो पुरुष/ उससे जीत नहीं/ उससे
पार नहीं है पाते/ तो वे हैं कहते/ बड़ी बिगडैल/ है ये लड़की  

डॉ. अंबेडकर का मानना था कि स्त्रियों की स्वतंत्रता और उनके विकास से ही देश के उत्थान को आंका जाना चाहिए। डॉ. बलराज की कविताएं इसी वैचारिकी को लेकर चलती हुई दिखती है। बलराज सिंहमार ने अपने अध्यक्षी भाषण में कहा कुछ लोग सामने से काम करते हुए दिखते हैं, कुछ लोग परदे के पीछे रहकर काम करते हैं जो अक्सर दिखते नहीं, उन सभी सदस्यों का भी हार्दिक आभार जिनकी वजह से यह कार्यक्रम आयोजित हो पाया।    

कार्यक्रम के अंत में संचालक मामचंद सागर जी ने डॉ. सरोज को उनके अध्यक्षीय वक्तव्य के लिए मंच पर बुलाया। इस काव्य गोष्ठी की अध्यक्ष डॉ. सरोज, विवेकानंद कॉलेज में अध्यापन कार्य से जुड़ी हैं। अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ. सरोज ने सभी रचनाकारों का हौंसला बढ़ाया तथा इस सफल आयोजन के लिए अलेस अध्यक्ष , अलेस कार्यकारिणी तथा आर्यभट्ट महाविद्यालय का विशेष रूप से आभार व्यक्त किया और बधाई दी। एक कवयित्री के रूप में डॉ. सरोज लगातार लिख और बोल रहीं हैं। सरल , सपाट शब्दों में समाज के शोषित तबके के प्रति अपनी गहरी संवेदनाओं का ज्वार बड़े ही संयमित शब्दावली में वे रखती हैं। मंच से उन्होंने बाइक वाले कविता सुनाई। यह कविता आधुनिक शहरों में नजरअंदाज होते डिलीवरी बॉयस और उनके साथ होते व्यवसायिक और मानवीय शोषण को उजागर करती है।  

कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में इग्नू से प्रोफेसर प्रमोद मेहरा भी जुड़े। मंच पर अपने अध्यक्षीय भाषण की शुरुआत में वे एक कविता सुनाते हैं एक बगल में नींद होगी एक बगल में लोरियां/एक बगल में चांद होगा एक बगल में रोटियां'। प्रो. मेहरा ने अलेस कार्यकारिणी और आर्यभट्ट कॉलेज का धन्यवाद किया।   

आक्टोविजो पाज कहते थे कि प्रत्येक पाठक दूसरा कवि है और यह बात कार्यक्रम से जुड़े उन युवा साथियों पर सटीक बैठती है जो इस गोष्ठी से श्रोता के रूप में जुड़े। अशोक कुमार और संजीव डांडा ने भी कार्यक्रम को सफल बनाने में अपनी- अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा तकनीकी समस्या के कारण जापान से सूरज बडत्या, प्रो. इशीदा तथा   जापानी छात्र-छात्राएं जुड़ नहीं पाएं। कार्यक्रम को सुचारू रूप से चलाने में प्रभात, शाहरुख, अमन, जैसे युवा साथियों का बड़ा सहयोग रहा। कार्यक्रम में लगभग सौ- सवा सौ श्रोताओं ने युवा कवियों की कविताओं का आनंद लिया और कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।अलेस सभी सम्मानित कवियों और श्रोताओं का हार्दिक अभिनंदन और आभार व्यक्त करता है।        


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