दिल्ली शिक्षक विश्वविद्यालय की स्थापना दिल्ली सरकार
द्वारा दिनांक 26 जनवरी,2022 को गई है। मार्च, 2022 में दिल्ली के
शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने इसका विधिवत उद्घाटन
आउट्रम लेन कैम्पस, दिल्ली में किया। इस विश्वविद्यालय के प्रथम उपकुलपति के रूप
सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् प्रो. धनंजय जोशी को नियुक्त किया गया। इस विश्वविद्यालय को
बनाने के पीछे सरकार का क्या उद्देश्य है, उसपर डॉ. ममता ने
उपकुलपति प्रो. धनंजय जोशी से ख़ास बातचीत की है।
डॉ. ममता: सबसे पहले मैं आपसे दिल्ली टीचर्स
यूनिवर्सिटी के विज़न के बारे में जानना चाहूंगी कि आपकी नज़र में DTU का क्या विज़न है?
प्रो. जोशी : सबसे पहले आपको धन्यवाद की आप हम तक
पहुंचे और हमारे कैंपस के लिए समय निकाला, देखिए दिल्ली
टीचर्स यूनिवर्सिटी 26 जनवरी 2022 को एक एक्ट के तहत विधान सभा से पास हुआ और स्थापित हुई और
इसका जो मुख्य उद्देश्य यह है कि शिक्षकों के लिए एक नायब विश्वविद्यालय बनाया जाए
जो कि एक मिसाल कायम करें। अभी तक देश में
जैसे IIT बने IIM बने AIIMS बने, पर टीचर्स के बारे में ऐसा कोई प्रयोग नहीं हुआ तो यह इस
तरीके का एक प्रयोग है और उत्तरी भारत का यह एक पहला प्रयास है और भारत में अभी
ऐसे प्रयोग कम हुए है हमारी जो ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति नीति 2020’ है वह भी मुख्य
रूप से शिक्षकों पर ही केंद्रित है तथा इसका यह मानना है कि टीचर्स प्रोग्राम बहुत
जरूरी है इस हालात में यह बहुत बड़ी सोच है। पहली बार शिक्षकों को केंद्र में लाया
गया कि उनका एक अलग संस्थान बने क्योंकि जो संस्थान अभी वर्तमान में चल रहे हैं वहां
पर जो शिक्षकों के उत्थान के लिए कार्य करना चाहिए, जो 360 डिग्री का विकास
होना चाहिए उसका काम वहां इसलिए नहीं हो पा रहा या कम हो पा रहा है क्योंकि वहां B.Ed और M.Ed का विभाग
विश्वविद्यालय के एक कोने में बना दिए गए हैं वहां वह जो उन्हें महत्त्व मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाता है जबकि हमारे
यहां केवल और केवल शिक्षकों पर ही हमारा पूरा ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
डॉ. ममता : जैसा कि आपने कहा कि ‘दिल्ली टीचर्स
यूनिवर्सिटी’ का विज़न बहुत बड़ा है और आपने एक और बात कही कि अलग-अलग
विश्वविद्यालयों में एक अलग विभाग B.Ed और M.Ed के लिए बना दिये
जाते हैं तो इस तरह से बने इन विभागों में आपको क्या-क्या कमियां नजर आती हैं और
इन खामियों को आप अपनी यूनिवर्सिटी में कैसे नहीं पाते या सुधार के लिए आपकी क्या
योजनाएं हैं? इस पर आपके क्या विचार है?
प्रो. जोशी: अगर आप आज़ादी के बाद से अब तक अध्यापन
शिक्षण का इतिहास उठा कर देखें तो सबसे ज्यादा उपेक्षित क्षेत्र जो रहा वह शिक्षक, शिक्षण का रहा है, हमने भाषाओं के ऊपर
विभाग बनाएं हमने विश्वविद्यालय स्थापित किए हमने भाषा के ऊपर संस्थान बनाएं वह
सारे काम तो किये है लेकिन जो एक सोच थी जैसा कि मैंने अपने पहले प्रश्न के उत्तर
में भी बोला कि शिक्षकों के लिए एक अलग विश्वविद्यालय का गठन किया जाए और यह बात
नई नहीं है यह बात पहले भी कई आयोगों ने उठाई भी है जैसा कि ‘राष्ट्रीय शिक्षा
आयोग 1964’ में ही कहा था कि हमें शिक्षकों के ऊपर अभी बहुत काम करने
की जरूरत है हायर एजुकेशन के जो प्रोफेसर होते हैं उनके लिए भी B.Ed अनिवार्य होना
चाहिए शिक्षा नीति भी कहती है उच्च शिक्षा की शिक्षाशास्त्र (pedagogy of higher education),
हर शिक्षक जो किसी भी स्तर पर पढ़ाता है बिना प्रशिक्षण के
अगर कोई शिक्षक कक्षा में चला जाता है तो यह तो ऐसे हो गया कि कोई सैनिक बिना
हथियार सीमा पर लड़ने चला गया, अगर बिना प्रशिक्षण के हम इतना बड़ा काम जिसमें देश के
भविष्य का निर्माण हो रहा है कर रहे हैं और उसके निर्माता पर ध्यान नहीं दे रहे
हैं तो यह बेहद चिंता का विषय है अध्यापक प्रशिक्षण में सबसे बड़ी दिक्कत यह आती
है कि वहां पर संसाधनों की कमी हो जाती है जो जैसे आईटी लैब्स वगैरह ,आधी से ज्यादा
पोस्ट खाली रहती हैं और जो सबसे बड़ी समस्या समस्या है शिक्षक का व्यवसायीकरण
अर्थात नॉन अटेंडिंग डिग्री लेने का चलन कि “बिना जाइये और
डिग्री पाइये” जिसका नुकसान यह हुआ कि आज के वक्त में शिक्षा क्षेत्र को
एक अंतिम विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, जहां पहले शिक्षक
बनना एक जुनून हुआ करता था वहीं आज वह लोग शिक्षक बन रहे हैं जो पहले कहीं और काम
कर रहे थे और वहां कुछ खास नहीं मिला तो वह अंतिम विकल्म के रूप में शिक्षण
क्षेत्र में आ गए तो उस आधार पर न्याय नहीं हुआ हम चाहते हैं इस इस विश्वविद्यालय
में ऐसे शिक्षक बनाएं जो कर्तव्य परायणता के साथ एक अच्छे शिक्षक बने
और राष्ट्र के विकास में योगदान दें।
डॉ. ममता: एक बेहतर राष्ट्र के निर्माण के लिए शिक्षा
और शिक्षक जरूरी है। आपके अनुसार हमें अभी अच्छे शिक्षकों का निर्माण करना है तो
क्या यह विश्वविद्यालय इस संभावना को बल दे रहा है । इस यूनिवर्सिटी से शिक्षा
ग्रहण करने के बाद क्या छात्र-छात्राएं शिक्षण के क्षेत्र में ही जा सकते हैं या
वे अन्य क्षेत्रों के लिए भी सक्षम बनेंगे?
प्रो. जोशी : यह बहुत अच्छा प्रश्न है आपका, देखिये बी.एड
करने का यह अर्थ नहीं है कि आप ये कोर्स करके अपने को शिक्षक तक ही सीमित कर ले आज
के दौर में शिक्षक प्रशिक्षक भी है, टीचर प्लानर भी
है वह पाठ्यक्रम निर्माता भी है इस प्रकार आज शिक्षक किसी एक क्षेत्र तक ही सीमित
नहीं है इतनी सारी गैर सरकारी संगठन है जहां पर आज शिक्षक की मांग है और जहां बहुत
सारे अच्छे शिक्षक काम कर सकते हैं वस्तुतः आज के दौर में यह मान लिया गया है कि B.Ed करने के बाद
व्यक्ति केवल छात्रों को ही पढ़ायेगा जबकि ऐसा नहीं है वह कंटेंट राइटिंग कर सकता
है पालिसी मेकिंग में जा सकता है और जो एक बात जिस पर सरकार अभी भी काम नहीं कर
रही है और उन्हें करना चाहिए वह इंडियन एजुकेशन सर्विस जिसकी बात 1882 में ‘हंटर आयोग’ ने भी की थी कि
एक भारतीय प्रशासनिक सेवा की तरह एक भारतीय शिक्षक सेवा भी होनी चाहिए जैसे इंडियन
रेलवे सर्विस उसी तरह भारतीय शिक्षक सेवा क्यों नहीं है जिसमें सारे B.Ed पास किए हुए लोग
हैं वे देश के एजुकेशन ऑफिसर्स बनें और बेहतर भविष्य के लिए शिक्षा के क्षेत्र में
शोध करें। जिस तरह आज लोग आईएएस के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं उसी तरह लोग भारतीय
शिक्षक सेवा को ले कर भी उत्साहित हों और जो लोग बी.एड कर के आएं वो सीधा भारतीय शिक्षक
सेवा में कार्यरत हों तथा शिक्षा के क्षेत्र में वे अपनी सेवाएं प्रदान कर सकें। अब ये कार्य किसका है, ये कार्य सरकार
का है की वे UPSC में इसे शामिल करे और ये बात मैं पहले भी कह चुका हूँ की
अभी हमें इस क्षेत्र में बहुत कार्य करने की ज़रूरत है लेकिन हमने इस पर ध्यान नहीं
दिया।
डॉ. ममता: सर जैसा कि हमारे शिक्षा मंत्री श्री मनीष
सिसोदिया जी ने कहा की जापान और फ़िनलैंड की यूनिवर्सिटीज शिक्षा के क्षेत्र में
बहुत अच्छा काम कर रही हैं परन्तु आने वाले समय में वह भारत से सीख लेंगे। उनके इस
वक्तव्य में आपको क्या संभावनाएं और क्या चुनौतियाँ नज़र आती हैं?
प्रो. जोशी: देखिये मुझे इस बात में एक बहुत बड़ा विज़न
नजर आता है और उन्होंने काफी दूरदर्शिता वाली बात कही है अगर आप भारत के 75 वर्ष से पहले का
इतिहास उठाकर देखें तो यह बात पूर्णतः सत्य हैं जहाँ भारत में फाह्यान आया
हवेनसांग आया जिस धरती पर नालंदा और तक्षशिला जैसे महान शिक्षा केंद्र थे वहां चीन
और केवल चीन से ही नहीं अपितु जहाँ जहाँ बौद्ध धर्म फैला, जहाँ जहाँ
महात्मा बुद्ध गए ताइवान कम्बोडिया आदि वहां-वहां से लोग यहाँ शिक्षा ग्रहण करने
आते थे और ये उस समय की बात है जब संसार में आवागमन के साधन भी बहुत काम थे तब भी
हमारा भारत काफी समृद्ध था जहाँ पर हमारे पास बिजली भी नहीं थी न ही सड़के थी तब भी
हमारी शिक्षा व्यवस्था इतनी समृद्ध थी कि लोग दूर दूर से भारत में शिक्षा ग्रहण
करने आते थे उस समय के यात्री अपनी यात्रा वृतांत में लिखते है की हमने भारत में
कोई भी अशिक्षित नहीं देखा कोई अनपढ़ नहीं देखा कोई गरीब नहीं देखा हर व्यक्ति
शिक्षित व समृद्ध मिला पर अब ऐसा क्या हो गया की हम आज शिक्षा के क्षेत्र में इतने
पीछे रह गए और अब जब हम आज की बात करते है तो यह पाते है की विश्व के सभी बड़े-बड़े
उद्यमों में भारतीय ही बैठे है जैसे की सुन्दर पचाई है पराग अग्रवाल, है इसी तरह से
हमें एक ऐसे भारत का निर्माण करना है जो की भविष्य में भी और इसी तरह के नायकों का
निर्माण करने में सक्षम हों।
डॉ. ममता: सर इसी से एक और प्रश्न निकल कर आ रहा है कि
आपके अनुसार ऐसी कौन से तीन कारण हैं जिसकी वजह से आपको लगता है कि हमारी शिक्षा
पद्धति पिछड़ी हुई है?
प्रो. जोशी: देखिये इसमें सबसे बड़ी वजह तो ये है की हम
हमारी शिक्षा में तो अच्छे हैं लेकिन हमारे कार्यान्वयन में कमी है,1947 में हम आज़ाद हुए
और 1948 में ‘राधाकृष्णन आयोग’ आया जिसने
यूनिवर्सिटी एजुकेशन कमीशन के रूप में काम किया 1964 में पहला
राष्ट्रीय आयोग आया 1968 में पहली नीति आयी 1986 में पहली
राष्ट्रीय शिक्षा नीति आयी 1992 में प्लान ऑफ़ एक्शन (POA )आया। देखा जाये
तो हमारी योजना में कोई कमी नहीं है।
जैसे की निदा फ़ाज़ली साहब ने कहा है-
“तालीम का शोर इतना तहज़ीब पर ज़ोर इतना,
बरकत जो नहीं होती बस नियत ही ख़राब है।
अगर उपर से ही ये सब चीज़े आएं तो इसमें सुधार आएगा “यथा राजा तथा
प्रजा” इस क्रम के सरकार को सोंचना होगा हमेशा बड़े परिवर्तनों के
लिए एक बड़ी सोंच चाहिए तो अगर ये सोंच हमारे देश की है कि बदलाव लाये तो बदलाव
अवश्य होगा और यहाँ एक तो कमी यह रह गई की हमने इन नीतियो का निर्माण तो किया पर
ठीक तरह से इसका अमल नहीं कर पाए। दूसरा यह रहा की इन शिक्षाओं को जो बजट मिलना
चाहिए था वो मिल नहीं पाया जैसा की ‘कोठरी कमीशन’ ने भी कहा की
शिक्षा पर 4.5 % बजट खर्च होना चाहिए पर जब आप यह सोचते है कि किसी को भी
शिक्षाविद बना दिया जाये किसी को भी 10,000 रुपये प्रति माह
में शिक्षक रख लिया जाए तो वह कौन सी क्रांति लाएगा और इस तरह हम विश्वगुरु नहीं बन
पाएंगे तो शिक्षकों के साथ हमने हमेशा ही उपेक्षित व्यवहार किया। अब तो खैर सातवाँ
वेतन आयोग आ गया है पर इससे पहले के हालत को देंखे तो एक साधारण सा व्यक्ति बी.टेक
करने के बाद उसे एक अच्छा पैकेज मिल जाता है पर एक शिक्षक जो इतनी मेहनत के बाद
शिक्षक बनता है उसका 12,000 - 15,000 रुपये प्रति माह के लिए शोषण होता है तो ये जो हमने मॉडल अपनाया है उसमे ये सबसे
बड़ी कमी यही रही। आप देखेंगे की IIT, IIM आदि बनाने के
कितना पैसा खर्च हो रहा है पर क्या टीचर एजुकेशन के लिए इतना पैसा खर्च होता है
इसके लिए हमने कोई ख़ास व्यवस्था नहीं की है। ये मान लिया जाता है की ये तो अध्यापक
है ये तो पढ़ा ही लेगा और न भी पढ़ाया तो क्या फर्क पड़ता है उसको तो कोई भी पढ़ा
लेगा। जैसे गांव में कहा जाता है कि कुछ भी न बना वो मास्टर बन गया ऐसा आखिर क्यों
कहा जाता है क्योंकि हमने मान लिया है कि न इसमें पैसा है न शोहरत है तो यह गलतिया
हमारी सामूहिक है और हमने इस पर पूर्णतः ध्यान नहीं दिया तथा यह उपेक्षित रहा। तीसरा
जो कारण रहा वो यह था कि हमने शिक्षा के पाश्चात्य प्रणाली का अनुसरण किया तथा
अंग्रेज़ो के समय से जो शिक्षा प्रणाली चली आ रही थी उसी को हमने चलने दिया और जो
वे ढांचा छोड़ के गए थे उसी आधार पर हम नए अंग्रेज़ बनाते चले गए हमने इसको भारतीय
संस्कृति से भाषा से समाहित करने का प्रयास नहीं किया और हमने शिक्षक शिक्षण को भी
मशीनी बना दिया। जब तक हम शिक्षा को व्यवसाय से नहीं जोड़ेंगे, आर्थिक रूप से
सशक्त नहीं बनाएंगे, इसमें अपना तन मन धन नहीं लगाएंगे, तब तक हम फ़िनलैंड मॉडल से अपनी तुलना नहीं कर सकते है। वस्तुतः
उन देशों ने अपने यहाँ शिक्षण को एक गरिमा प्रदान की तथा इसमें इतना निवेश किया की
आज वहां विश्व के श्रेष्ठ शिक्षक काम करते है और पूरा देश उन्हें सम्मान भाव से देखता
है। एक घटना मैं आपके साथ साझा करना चाहूंगा। मेरे एक मित्र आये थे वे जापान में
शिक्षण क्षेत्र से जुड़े है उन्होंने मुझे बताया की एक बार वो प्लेन से यात्रा कर
रहे थे अपने प्रोजेक्ट के शिक्षक के साथ तथा उन्होंने अपने साथी शिक्षकों को बोला
की अपनी जैकेट पहन लो और उसमे जापानी में I am a Teacher लिखा था अब
एयरपोर्ट पर उनका सामान 2 किलो ज्यादा था तथा जापानी अपने नियमों को लेकर बड़े पाबंध
है तो उनसे कहा गया कि आपका सामान 2 किलो ज्यादा है
उसके लिए आपको अलग से पैसे देने पड़ेंगे। उन्होंने कहा ठीक है पर इतने में ही
एयरपोर्ट कर्मियों की नज़र उनकी जैकेट पर पड़ी तो उन्होंने कहा की कोई बात नहीं आप
एक शिक्षक है आप जा सकते है तो आप ये सोंचिये की जिस देश में संसद तक यह भावना है
की शिक्षक के आते ही उसका सम्मान किया जाए जहाँ गुरु के लिए इतनी इज़्ज़त होती थी की
राजा भी उनके सम्मान में खड़ा हो जाया करते थे, जहाँ गुरु को
इतना सम्मान दिया जाता था तो आप यह देख सकते है कि आज गुरु की दशा क्या है आज कोई
इस क्षेत्र में आना नहीं चाहता है और कोई माँ बाप अपने बच्चो को शिक्षक नहीं बनाना
चाहता तो यह कितनी बड़ी विडम्बना है।
डॉ. ममता: सर अब मैं इस यूनिवर्सिटी के मूलभूत चीज़ो को
जानना चाहूंगी की कौन- कौन से कोर्स आप ले कर आएं हैं ताकि जो छात्र हमसे जुड़े हैं
वो इससे अवगत हो पाए।
प्रो. जोशी: देखिये हमारे लिए टीचर एजुकेशन हमारा
मुख्य उद्देश्य है कि हम मुख्य रूप से टीचर एजुकेशन के पाठ्यक्रम ले कर आये तो
मुख्य रूप से हम B.Ed, M.Ed इनोवेटिव श्रेणी के अंतर्गत ला रहे है इसके आलावा BA(B.Ed), B.Com( B.Ed),
B.SC(B.Ed) आदि पाठ्यक्रमों को हम लाने का प्रयास कर रहे हैं। इसके
अलावा हम मास्टर्स के लिए MA एजुकेशन भी प्लान कर रहे है इसके अलावा हम दो सर्टिफिकेट
कोर्स भी ला रहे है जो स्कूल टीचर्स के लिए है, जिसकी आज हमें
बहुत ज़रूरत है कि हम अच्छे शिक्षकों को यहाँ ले कर आएं और उनको पढ़ाने वाले भी
अच्छे हो। साथ ही हम उन्हें केवल थ्योरी न पढ़ाये उनको धरातलीय परिस्थिति से भी
अवगत कराये और इसी क्रम में हम बाहर की यूनिवर्सिटी से भी लगातार सबंध स्थापित
बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि हमारे बच्चे वहां जाये और कम से कम एक क्रेडिट
वहां से पढ़ के आएं ।
डॉ. ममता: जिस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए यह
विश्वविद्यालय बन रहा है क्या इसमें सामाजिक न्याय का भी उतना ही ध्यान रखा जायेगा? क्या सभी वर्गो
को उसका उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा? और एक बात और
इसमें जोड़ना चाहूंगी कि जैसे कि दिल्ली सरकार के अंदर जो सरकारी स्कूल आते हैं
उनमे मुख्य रूप से अंग्रेजी और हिंदी दोनों माध्यमों में कक्षा चलती हैं तो क्या
यहाँ(विश्वविद्यालय) जो प्रवेश परीक्षा होगी और जो आगे शिक्षा प्रदान की जाएगी
क्या उसका माध्यम भी हिंदी और अग्रेंजी दोनों होगा?
प्रो. जोशी: देखिये इसमें कोई शक नहीं की हम देश के
संविधान द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय है और हमारे देश का संविधान किसी तरह
की असमानता की बात नहीं करता है वह जाति,धर्म,नस्ल आदि के आधार
पर भेदभाव नहीं करता तो जो भारत के संविधान द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय है उसमें
भी किसी तरह के भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं होगी और समाज के हर वर्ग को
प्रतिनिधित्व देते हुए हम एक समावेशी शिक्षा प्रदान करेंगे ताकि समाज के सभी वर्ग
का सामूहिक विकास हो पाए क्योंकि अगर शिक्षक शिक्षण में ही भेदभाव होगा तो आगे
चलकर वह क्या ही शिक्षक बन पाएंगे और जो आपने प्रश्न उठाया है की हिंदी और
अंग्रेजी यहाँ किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होगा पढ़ाने की शैली, परीक्षा का
माध्यम हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी भी होगा।
डॉ.ममता: जैसा कि शिक्षक प्रशिक्षण में प्रायोगिक
शिक्षण भी शामिल होता है जिसमें थ्योरी के साथ प्रैक्टिकल प्रशिक्षण, भावी शिक्षकों को
दिया जाता है। आपका विश्वविद्यालय, प्राइवेट
यूनिवर्सिटी की तुलना में कैसे अधिक इस क्षेत्र मे बल देगा?
प्रो. जोशी : देखिये इस विश्वविद्यालय का जन्म ही
इसलिए हुआ है की हमारे बच्चों को वर्ल्ड क्लास प्रशिक्षण दिया जाये तो उनको जितने
भी देश के प्रतिष्ठित विद्यालय हैं उनके साथ उनका काम कराया जाएगा और प्रशिक्षण के
लिए उन्हें वहां भी भेजा जाएगा और इसके साथ-साथ इन्हे यूनिवर्सिटी में भी
इंटर्नशिप के लिए भेजा जायेगा और इस विषय में हमारी IIM के साथ बात चल
रही है तथा NIE सिंगापुर से भी बात चल रही है ताकि वे कुँए के मेंढक बन के
ना रह जाये और जैसा की हमारे मंत्री जी ने भी कहा था की 70 % थ्योरी और 30 % फील्ड का ज्ञान
उन्हें मिले ताकि वे समाज की नब्ज़ को देखे और उन्हें धरातल का ज्ञान मिल सके वो कुछ ऐसे भी काम करे की जिससे समाज का
भी भला और विकास हो क्यूंकि जब तक शिक्षक संवेदनशील नहीं होगा तब तक समाज का
उत्थान नहीं हो सकेगा।
डॉ. ममता :कई जगह ‘नई शिक्षा नीति 2020’ की आलोचना भी हो
रही है इसके एक व्यवस्था यह है कि छात्र जो भी विषय लेगा उसे कई बार बदल भी सकता
है तथा एक विश्वविद्यालय में पढ़ के दूसरे साल दूसरा विश्वविद्यालय भी जा सकता है।
इससे जब वह छात्र स्नातक करके बी.एड करेगा तो इससे उसकी योग्यता पर क्या कोई फर्क
पड़ेगा? इस तरह नई शिक्षा नीति को आप बाधा की तरह से देखते हैं या
पिछली कमियों के समाधान के रूप में?
प्रो. जोशी: देखिये मैं तो हर चुनौती में संभावना
देखता हूँ और वो मैं इसलिए देखता हूँ की आज हमारे देश के बच्चे दूसरे देशो में
पढ़ने जाना चाहते हैं। हर दूसरे बच्चे की ख्वाहिश है कि मैं पढ़ने विदेश जाऊं अब कुछ
तो वजह रही होंगी कि बच्चा आज यहाँ न पढ़ के विदेश जाना चाहता है और यहाँ तक की
भारत से डिग्री लेकर विदेश में काम करने जाना चाहते है तो हम ऐसी व्यवस्था क्यों न
बनाएं जो काफी लचीली हो तथा जिसमे कम से कम बाध्यता हो साथ ही हमारी
यूनिवर्सिटी
की प्रतिष्ठा इतनी हो की हमारे बच्चो को वहां आसानी से नौकरी मिल जाये और आज भी
हमारे शिक्षा व्यवस्था की ये खूबी है आज जो बच्चे यहाँ पढ़ रहे है हमारी 12वीं तक की शिक्षा
व्यवस्था इतनी मज़बूत है कि ओबामा जी ने भी कहा है की शिक्षा के क्षेत्र में अगर
सबसे ज्यादा हमें किसी से खतरा है तो वह भारत है तथा अगले कुछ सालो में भारतीय हर
पद पर कार्यरत होंगे चाहे वो हमें वीज़ा दे या न दे पर ज्ञान की कोई सीमा नहीं है
तो नई शिक्षा नीति हमें मदद ही करती है और मुझे ऐसा लगता नहीं है, इसकी वजह से
हमें कोई अड़चन आएगी बल्कि नई शिक्षा नीति तो हमें ज्ञान के विस्तार में ही मदद
करती है जैसे आज एक विषय के साथ दूसरा विषय भी पढ़ सकते है जबकि पहले येह होता था
की लोग एक धारा में ही आगे बढ़े और चले तो यह लचीलापन हमें नई शिक्षा नीति से ही मिलता है।
लेखिका- डॉ. ममता
महासचिव - सम्यक संवाद
एम.ए (हिंदी), एम.फिल, तथा 'दलित कथा साहित्य में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक चेतना', विषय में पीएच.डी उपाधि प्राप्त।
प्रकाशित पुस्तकें- 'दलित साहित्य और सिनेमा :एक नयी दृष्टि' तथा विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में लेख व कविताएं प्रकाशित