img

अंबेडकरवादी लेखक संघ के 'तृतीय दलित साहित्य महोत्सव' में दिखी साहित्यकारों, कलाकारों और रंगकर्मियों की मुखर अभिव्यक्ति

अंबेडकरवादी लेखक संघ एवं आर्यभट्ट कॉलेज के संयुक्त प्रयास से ‘तृतीय दलित साहित्य महोत्सव’ का आयोजन दिनांक 3-4 फरवरी, 2023 को दिल्ली में आर्यभट्ट कॉलेज (दक्षिणी परिसर) में किया गया।  

अंबेडकरवादी लेखक संघ सामाजिक, शैक्षिणक और सांस्कृतिक क्षेत्र में अंबेडकरवादी वैचारिकी को पोषित करने का काम लगातार कर रहा है। तृतीय दलित साहित्य महोत्सव के आयोजक सूरज बडत्या ने कहा कि ‘हमने जो आगाज़ किया था वह अपने में एक सार्थक पहल के रूप में भारत में ही नहीं बल्कि 'ग्लोबल वर्ल्ड'  ने भी देखा और हमें अपना समर्थन देकर सराहा भी। “ पिछले दो महोत्सवों का आयोजन किरोड़ीमल कॉलेज में करवाया गया था। डॉ. अम्बेडकर के दिखाये रास्ते पर चल पड़ा यह कारवां अपने तीसरे पड़ाव को भी पार कर गया है। आयोजकों  ने इस तीसरे दलित साहित्य महोत्सव की थीम 'साहित्य से एक नयी दुनिया संभव हैं ' रखी, जिसके पीछे का उद्देश्य साहित्य की महत्ता को और मुखर ढंग से समाज को बताना था।  

अंबेडकरवादी लेखक संघ की उपाध्यक्ष डॉ. हेमलता ने भी कहा कि “लोगों से मिली इसी ऊर्जा से उत्साहित-प्रेरित होकर और अम्बेडकरवादी समझ को पुन: समाज में जीवित करने का कार्य यह महोत्सव कर रहा है एक साहित्यिक-सांस्कृतिक विकल्प बनाकर हमें 'तृतीय दलित लिटरेचर फेस्टिवल - 2023'  को देखना और समझना चाहिए। इस प्रकार के साहित्यिक महोत्सवों का आयोजन लगातार हो रहा है , यह साहित्यिक महोत्सवों का उद्देश्य ‘पे बेक टू द सोसायटी’  है जिसमें सभी ने अपने पूर्वजों, नायक-नायिकाओं की संघर्षशील विरासत को आगे बढ़ाने का कार्य किया है तथा यह कार्यक्रम के हर क्षेत्र में देखने को मिला । एक मजबूत वैचारिकी की बुनियाद पर यह आयोजन टिका हुआ है जिसके पीछे अम्बेडकरवाद है। आज हम अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझते हैं और 'पे बेक टू द सोसायटी' के जरिये डॉ. अम्बेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं। संविधान की प्रस्तावना पढ़कर यह संदेश दिया गया कि हम सभी भारत के लोकतंत्र और संविधान पर विश्वास रखते हैं जो हमें समानता, बंधुत्व और स्वतंत्रता दिलाएगा।    

'दलित लिटरेचर फेस्टिवल' इन्हीं साहित्यकारों के लेखन, संघर्ष और आन्दोलन को अपना समर्थन देने की घोषणा करता है, साथ ही ऐसी तमाम वैश्विक हाशियाकृत अस्मिताओं को 'दलित लिटरेचर फेस्टिवल' भरपूर जगह देता हुआ दिखा। आयोजकों ने मंचों के नाम सुप्रसिद्ध वैश्विक और भारतीय हस्तियों के नाम पर दिये थे जिन्होंने समाज के लिए निरंतर कार्य किया। इसी कड़ी में खुला मंच का नाम ‘मार्टिन लूथर खुला मंच’ रखा गया तथा सभागार का नाम भारत की पहली महिला शिक्षिका ‘सावित्रीबाई फुले’ और ‘फातिमा शेख’ के नाम पर रखा गया।    
 
उद्घाटन सत्र का आयोजन सुप्रसिद्ध ध्रुपद गायिका सुरेखा कांबले की अद्भुत कला की प्रस्तुति से हुआ। यह महोत्सव , साहित्य और कला के संगम का साक्षी बना, साहित्य के साथ साथ कला के विद्वतजनों ने भी इस कार्यक्रम में अपनी अपनी सहभागिता दी। वर्तमान में सुरेखा जी भोपाल से 'द आर्ट हाउस' का संचालन एवं विद्यार्थियों को ध्रुपद की शिक्षा देती हैं। ध्रुपद गायन शैली भारतीय संगीत परंपरा में अपनी अलग और विशेष स्थान रखती है। उनकी उमंदा प्रस्तुति ने सभी श्रोतागणों को मंत्रमुग्ध कर दिया।     

अंबेडकरवादी लोकगायक देशराज सिंह ने भी अपनी गायकी से समाँ बाँध लिया। अंबेडकर को जन जन का नायक बताते हुए उनके किये समाजहित के कार्यो को गीतबद्ध कर देशराज जी ने इस आयोजन का सफल आगाज़ किया। इस कार्यक्रम में कॉलेज के प्राचार्य मनोज सिन्हा जी का भी सहयोग रहा जिन्होंने सभी आगंतु साहित्यकारों के लिए स्वागत वक्तव्य दिया।  
 
सांस्कृतिक प्रस्तुतियां कार्यक्रम की जान बना जिसमें ‘राहुल कुमार रजक’ जैसे प्रशिक्षित युवा कथक नर्तकारों ने भी हिस्सा लिया। राहुल कुमार रजक ने नई दिल्ली के कलाश्रम से कथक पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज और विदुषी सास्वती सेन के मार्गदर्शन में सीखा प्राप्त की। उन्होंने ' छाप तिलक मोहो लीनी रे , तोसे नैना मिलाइके' गीत पर कथक नृत्य कर कॉलेज परिसर को गूंजायमान कर दिया। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकारों का रंगारंग प्रस्तुति कार्यक्रम की जान बनकर सामने आया,वहां उपस्थित दर्शकों ने भी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की खुलकर प्रसंशा कीं। इसके बाद कालिंदी कॉलेज की छात्रा रशिका बड़ोदिया और उनकी टीम ने महिला समस्याओं और महिला सशक्तिकरण पर बेहतरीन नाटक प्रस्तुत किया।  

‘मलखान सिंह पुस्तक मेला’ भी इस आयोजन का हिस्सा बना जिसमें आलोचना, कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, संस्मरण, आत्मकथाएँ तथा बाल पत्रिकाएं भी शामिल थी। एकलव्य प्रकाशन द्वारा बाल साहित्य पर आधारित अंबेडकरवादी वैचारिकी से पोषित किताबों का भंडार भी दिखा जिसने सभी को आकर्षित किया। साथ ही इस आयोजन पुस्तकों का विमोचन भी हुआ। डॉ. अनीता और बलराज सिहमार की किताब ‘सिनेमा का आलोचनात्मक संवाद’ तथा डॉ. सीमा माथुर का काव्य संग्रह ‘जंग जारी है’ का विमोचन किया गया।    

इस कार्यक्रम में दलित, आदिवासी, घुमंतू, स्त्री, अल्पसंख्यक वर्गों पर केन्द्रित सत्रों में भारी संख्या में लोग एकजुट हुए । यह महोत्सव साहित्य को बाजार की भेंट चढ़ने से रोकने में सफल हुआ। यहां किसी भी सरकारी ,गैरसरकारी संस्था के किसी भी प्रकार के विज्ञापन तथा प्रचार उपकरण नहीं दिखे। अपने मिशन पर चलने का प्रण लिए ‘अंबेडकरवादी लेखक संघ’ का यह उद्देश्य है कि वह समाज को जाग्रत कर सके। साहित्य जब बाजार बन जाता है तो उसमें वक्ता अपने विचारों को तार्किकता तथा तथ्यों के आधार पर नहीं रख पाता , वह केवल और केवल धनोपार्जन को ही कार्यक्रम का लक्ष्य बनाकर साहित्य को बेचता है। इस कार्यक्रम में शामिल तमाम वक्ताओ को ना तो किसी भी प्रकार का मानदेय दिया गया और ना ही आने जाने का खर्च, बावजूद इसके वक्ता और श्रोता कार्यक्रम में पहुंचे और इसे सफल बनाया।  
 
उद्घाटन सत्र के बाद विभिन्न साहित्यिक और सामाजिक विषयों पर सत्रों को निर्धारित किया गया था जिसमें एक तरफ 'हाशिये की स्त्री' और दूसरी तरफ  'दलित साहित्य: अतीत, वर्तमान और भविष्य' विषय पर आलेख प्रस्तुति के साथ साथ विषय के जानकार वक्ताओं का वक्तव्य सुनने को भी मिला।   पहले दिन की समाप्ति से पूर्व ‘रैदास सांस्कृतिक संध्या’ का आयोजन रखा गया जिसमें नियती राठौड़ ने ‘महाश्वेता देवी’ की रचना ‘रुदाली’ पर बेहतरीन अभिनय कर सभी को विस्मयाभिभूत कर दिया।  
 
4 फरवरी, इस महोत्सव का दूसरा दिन था। ‘सिनेमा और हाशिए का समुदाय’ तथा ‘अल्पसंख्यक समुदाय साहित्य और समाज में वर्तमान’ विषय पर सत्र चले जिनमें जयप्रकाश कर्दम, असंगघोष, बल्ली सिंह चीमा, चौथीराम यादव, राजेश पासवान, रजत रानी मीनू, श्यौराज सिंह बेचैन, राजेन्द्र बडगूजर, ग्रेस बानो तथा सूरज एगड़े साहित्यकार और सामाजिक कार्यों में अपना जीवन लगाने वाली हस्तियों के वक्तव्यों से रुबरु होने का मौका मिला। मुलाकात का अवसर मिला। और समाज पर अपने दृष्टि रखी साथ ही भविष्य की दुष्चिंताओ का जिक्र भी किया। दोपहर के भोजन के बाद कबीर काव्य गौष्ठी रखकर महान संत कबीर को भी शत-शत नमन किया गया। काव्य गौष्ठी में कविता ,गीत और गजल के साथ साथ लोक भाषा में काव्य पाठ किया गया।  
 
कार्यक्रम के संयोजक डॉ. बलराज सिहमार ने कार्यक्रम की समाप्ति पर अगले दलित साहित्य महोत्सव को करवाने की घोषणा की और कहा कि अगला दलित साहित्य महोत्सव 2024 में आयोजित किया जायेगा। इस आयोजन को सफल बनाने में आर्यभट्ट कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने अपना भरपूर सहयोग दिया जिनकी वजह से ही यह आयोजन सुव्यस्थित तरीके से संपन्न हो सका। इस महोत्सव के आयोजक संजीव डांडा ने “अभी तो ये अंगडाई है आगे और लड़ाई है” के गगनभेदी-उत्साहधर्मी नारे के साथ इस कार्यक्रम का समापन किया।


' पड़ताल ' से जुड़ने के लिए धन्यवाद अगर आपको यह रिपोर्ट पसंद आई हो तो कृपया इसे शेयर करें और सबस्क्राइब करें। हम एक गैर-लाभकारी संगठन हैं। हमारी पत्रकारिता को सरकार और कॉरपोरेट दबाव से मुक्त रखने के लिए आर्थिक मदद करें।

संबंधित खबरें

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *

0 Comments

मुख्य ख़बरें

मुख्य पड़ताल

विज्ञापन

संपादकीय

  • शिक्षक दिवस का चयन और जातिवादी मानसिकता

    शिक्षक दिवस एक बहुत ही पवित्र और सराहनीय दिवस है। ऐसे में इस दिन की महत्ता और बढ़ जाती है जब गुरु-शिष्य की परंपरा और मर्यादा खत्म हो रही है। वास्तव में डॉ. राधाकृष्णन  भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत…

वीडियो

Subscribe Newsletter

फेसबुक पर हमसे से जुड़े