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एक कविता : शिवसेना के चुनाव चिन्ह धनुष बाण पर...

धनुष पर पर चढ़े बाण की नोंक
जो दुश्मन की तरफ होती थी
अब बाण की वो नोंक
अपनों की तरफ मुड़ी है,
सर्वोच्च न्यायालय से लेकर
महाराष्ट्र की पूरी जनता असमंजस में पड़ी है!
धनुष बाण मेरा.....
नहीं-नहीं, धनुष बाण मेरा...
अरे धनुष बाण मेरा....
नहीं-नहीं धनुष बाण मेरा...
अरे कल तक जो लगते थे
जैसे सगे भाई हैं
जिन्होंने सुख-दुख के सारे पल एक साथ जिए हैं
इस घटिया राजनीति ने उन सगे भाइयों जैसे
लोगों को
एक-दूसरे के दुश्मन बना दिए हैं !
कहावत पुरानी है-
नादान बिल्लियों की लड़ाई में
तराजू हाथ में लेकर आने वाला बदमाश बंदर
दोनों बिल्लियों के हिस्से की रोटी खा जाता है 
दोनों बिल्लियां देखती रह जाती हैं 
उनके हिस्से में कुछ नहीं आता है!
महाराष्ट्र से प्रेम करने वालाहर महाराष्ट्रीयन
इस लड़ाई को देखकर परेशान हैं, मौन है
जबकि जानते सब हैं
कि बिल्लियों को आपस में लड़ाने वाला
असली बंदर कौन है...

डॉ. मुकेश गौतम, हास्य कवि, मुंबई


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