एक साल पहले सिनेमाघरों में
राष्ट्रगान अनिवार्य किया गया था। लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा
कि हर काम कोर्ट पर थोपना उचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि
सिनेमाघरों व अन्य स्थानों पर राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य हो या नहीं ये केंद्र
सरकार स्वयं तय करे। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये भी देखा जाना चाहिए कि
सिनेमाघर में लोग मनोरंजन के लिए जाते हैं, ऐसे में देशभक्ति का क्या पैमाना हो, इसके लिए कोई रेखा
तय होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के नोटिफिकेशन या नियम का मामला
संसद का है। इस मामले में अगली 9 जनवरी को होगी।
फिलहाल
सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश लागू रहेगा जिसके तहत सिनेमाघरों में राष्ट्रगान
बजाना अनिवार्य है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम.खानविल्कर और जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ की तीन
सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि लोग सिनेमाघर सिर्फ मनोरंजन के लिए जाते हैं। हम
क्यों देशभक्ति को अपनी बांहों में रखें। ये सब मामले मनोरंजन के हैं। लोग शॉर्टस
पहनकर सिनेमा जाते हैं, क्या आप कह सकते हैं कि वो राष्ट्रगान का सम्मान नहीं करते। आप
ये क्यों मानकर चलते हैं कि जो राष्ट्रगान के लिए खड़ा नहीं होता वो देशभक्त नहीं
है। सभी जो नहीं गाते या खड़े नहीं होते वो भी कम देशभक्त नहीं हैं। वहीं केंद्र सरकार की ओर
से अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि भारत एक विविधता वाला देश है और
एकरूपता लाने के लिए सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना आवश्यक है।
पीठ
ने संकेत दिया कि वह एक दिसंबर, 2016 के अपने आदेश में सुधार कर
सकती है। इसी आदेश के तहत देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने के मकसद से
सिनेमाघरों में फिल्म के प्रदर्शन से पहले राष्ट्रगान बजाना और दर्शकों के लिए
इसके सम्मान में खड़ा होना अनिवार्य किया गया था। न्यायालय ने कहा था कि जब
राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सम्मान दर्शाया जाता है तो यह मातृभूमि के
प्रति प्रेम और सम्मान को दर्शाता है।
गौरतलब है
कि पिछले साल श्याम नारायण चौकसे की याचिका पर एक दिसंबर को जस्टिस दीपक मिश्रा की
अध्यक्षता वाली पीठ ने सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले अनिवार्य रूप
से राष्ट्रगान बजाने ओैर दर्शकों को सम्मान में खड़े होने का आदेश दिया था।