आखिर 5 मई को शब्बीरपुर में हुआ क्या था ये साफतौर से सामने ही नही आ पा रहा है, मीडिया वही गीत गा रहा है जो उसे गाने के लिए पुलिस और प्रशासन कह रहा है। पूरा प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दुनिया को यही बता रहा है कि महाराणा प्रताप की जयंती निकल रही थी और दलितों ने उस पर हमला कर दिया और झगड़ा बढ़ गया जबकि गांव के दलितों का कहना है कि ऐसा कुछ भी नही था, महाराणा प्रताप की जयंती तो 9 मई को थी फिर जुलूस कहां से आ गया। दरअसल उस दिन एक भीड़ डीजे बजाते हुए शेरसिंह राणा के कार्यक्रम में शामिल होने शिमलाना जा रही थी, लेकिन दुधली में हुए कांड के बाद प्रशासन के आदेश पर पुलिस ने भीड़ को डीजे बजाने से मना किया। लेकिन जब ये भीड़ शब्बीरपुर में रविदास मंदिर के सामने से निकल रही थी तो गुरू रविदास और अंबेडकर के खिलाफ अपशब्द के नारे लगाने लगी और मंदिर में तोड़फोड़ से शुरू हुआ सिलसिला पूरे गांव में आगजनी और हिंसा में बदल गया। फूलनदेवी के हत्यारे शेरसिंह राणा के इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कई दिन पहले से सोशल मीडिया के जरिए आह्वान किया जा रहा था और राजपूतों को तलवारों के साथ शिमलाना में जुटने को कहा जा रहा था, क्या इससे ऐसा नही लगता कि ये सब पहले से सुनियोजित था। हालांकि शब्बीर पुर के पीड़ित इसकी कई और कारण बता रहे हैं दरअसल शब्बीर पुर जनरल सीट है जिस पर चमार जाति के शिव कुमार प्रधान का चुनाव जीत गए जो बात राजपूतों को सुहा नही रही थी। इसके अलावा प्रधान शिव कुमार ने दलितों को 85 बीघा जमीन के पट्टे बांटने के काम की शुरूआत कर रहे थे, और इस जमीन पर राजपूतों का कब्ज़ा है। तीसरा वहां के रविदास मंदिर के अंदर बाबा साहब अंबेडकर की मूर्ति की स्थापना का काम चल रहा था जिसे जानबूझकर रुकवाने की कोशिशें चल रही थीं, प्रशासन मूर्ति की लगाने की परमिशन देने में महीनों से आनाकानी कर रहा था। शायद इसीलिए हमला दलितों पर नहीं सिर्फ चमार जाति के लोगों पर किया गया, गांव में रह रहे और जाति के एक भी घर को नुकसान नही पहुंचाया गया। ये सारे कारण एक दिन में या एकाएक नही बने बल्कि लंबे समय में तैयार हुए हैं इसलिए शब्बीरपुर तलवारों और पेट्रोल बमों से हमला भी एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है। चिंगारी शब्बीरपुर से नही बल्कि दुधली से शुरू हुई। जहां 20 अप्रैल को में भाजपा सांसद राघव लखनपाल व उनके भाई राहुल लखनपाल, महानगर अध्यक्ष अमित गनरेजा, राहुल झाम, जितेन्द्र सचदेवा, सुमित जसूजा और अशोक भारती ने प्रशासन की इज़ाजत के बगैर अंबेडकर जयंती की शोभा यात्रा निकाली इस शोभा यात्रा को गांव के दलितों का कोई समर्थन नहीं था और न ही वे इसमें शामिल हुए थे। यह सब एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा था जिसके तहत बीजेपी सांसद राघव लखनपाल अपने भाई को मेयर के चुनाव से पहले लाइम लाइट में लाना चाहते थे और दलितों की आड़ में हिंदु-मुस्लिम रंग देना चाहते थे इसके लिए राघव लखनपाल सहारनपुर निकाय में दलितों के उन गांवों को संबोधित करना चाहते थे जिनकी निकाय चुनाव में जुड़ने की संभावना थी... इसलिए मीडिया का जमघट भी पहले से ही लगवा लिया गया था। 2014 में उपचुनावों के वक्त भी शहर में सिख-मुस्लिम विवाद कराने का आरोप उन पर है। जिस तरह से सड़क दूधली में भाजपा समर्थकों ने तांडव किया व उसके बाद एसपी लव कुमार के आवास पर हमला किया, और उनके परिवार को कई घंटे बंधक बनाए रखा, उससे तो ऐसा ही लगता है कि इन्हें सरकार की शह मिली हुई थी। दूधली में मुस्लिम इलाक़े से विरोध में पत्थरबाज़ी और प्रशासन के पंगु होने की स्थिति में एसपी कार्यालय पर हमला करवाकर भाजपा नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं को उकसाया। आखिर बाबा साहब की शोभायात्रा में जय श्री राम, भारत माता की जय और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे क्यों लगाए जा रहे थे। सड़क दूधली के स्थानीय दलितों पर एफ़आईआर की गई लेकिन बाहरी भाजपाई, बंजरगदल, हिंदू युवा वाहिनी के लोगों को खुली छूट साफ़ करती है कि पुलिस ऐसा करके मुस्लिम-दलितों के बीच तनाव पैदा करना चाहती थी लेकिन दलितों और मुस्लिमों की समझदारी के चलते ऐसा नही हो सका। जब ऐसा नही हो सका इन तो दूसरा निशाना शब्बीरपुर को बनाया गया। सहारनपुर का शब्बीरपुर गांव जिसका नाम विश्व के मानचित्र पर कोई महत्व नही था लेकिन 5 मई को हुई अमानवीय हिंसा के बाद शब्बीरपुर गांव को पूरा संसार जान गया, गुगल पर सर्च होने लगा, देसी मीडिया, विदेशी मीडिया ने खूब दिखाया। जिस गांव का कोई नाम तक नही जानता था वहां मीडिया ने दिन रात गुजार दिए। लेकिन सरकार ने उसकी सूध लेना गैर जरूरी समझा। भीम आर्मी जो शब्बीरपुर में हुई हिंसा के विरोध में प्रदर्शन के लिए प्रशासन से इज़ाज़त मांग रही थी, उसे इजाजत नही दी गई उल्टा हिंसा के लिए उकसाया गया, और जानबूझकर उसे उपद्रवी घोषित करवाने के लिए माहौल बनवाया गया। इंसाफ़ के सवाल पर भीम आर्मी का बनना और उसके बाद उसका दमन बताता है कि पुलिस और प्रशासन सवर्ण, सामंती तत्वों की शह पर काम कर रहा है, हिंसा के बाद बीते एक महीने के दौरान जिन दलित संगठनों या व्यक्तियों ने दलितों के सवाल पर चिंता व्यक्त की वह पुलिस के घेरे में हैं, लेकिन दूधली में हिंसा और एसपी के ऑफिस और घर पर तांडव मचाने वाले खुले घूम रहे हैं वो मंत्रियों के साथ योग कर रहे हैं लेकिन उनको पुलिस गिरफ्तार नही कर रही, लेकिन जब मुज़फ्फ़रनगर सांप्रदायिक हिंसा के आरोपी व केन्द्रीय राज्य मंत्री संजीव बालियान सहारनपुर आकर कहते हैं कि साज़िश करने और कराने वाले अब तक पुलिस की गिरफ्त में नहीं हैं, वह खुलेआम घूम रहे हैं, और दूसरे ही दिन भीम आर्मी के चन्द्रशेखर, अध्यक्ष विनय रतन, ज़िलाध्यक्ष कमल वालिया और मंजीत के खिलाफ़ गैर-ज़मानती वारंट जारी करते हुए सहारनपुर रेंज के आईजी एस. इमैनुअल द्वारा 12-12 हज़ार रुपए इनाम घोषित करना साफ़ करता है कि शासन-प्रशासन के निशाने पर सिर्फ़ दलित हैं। केन्द्रीय राज्य मंत्री संजीव बालियान अगर सहारनपुर को लेकर इतने ही चिंतित हैं तो आखिर क्यों नही वो मुख्य षडयंत्रकारी भाजपा सांसद राघव लखनपाल और भाजपा विधायक को गिरफ्तार करवाते, उल्टे भाजपा सांसद राघव लखनपाल और भाजपा के नेता जिन्होंने 20 अप्रैल से सहारनपुर को हिंसा की आग में झोंक दिया था, वो प्रशासन के साथ बैठक कर रहे हैं जिससे साफ़ दिख रहा है कि जिन्हें पुलिस मास्टरमाइंड करार दे रही हैं दरअसल पुलिस भाजपा नेताओं की भाषा बोल रही हैं। 5 मई की घटना के लिए शब्बीरपुर के प्रधान शिव कुमार को मास्टरमाइंड बताया जा रहा है, और हिंसा का सारा ठीकरा शिवकुमार के सिर फोड़ने की कवायद की जा रही है जबकि जुलूस के रूप में हज़ारों की भीड़ को बचाया जा रहा है... जिसने नंगी तलवारों, पेट्रोल बम से घंटों शब्बीरपुर में नंगा नाच किया और दलितों को मारा-काटा और आगजनी की उनको बचाया जा रहा है। इससे साफ़ है कि सरकार ठाकुर जाति के लोगों के साथ दे रही है। 5 मई को शब्बीरपुर की घटना के बाद जिस तरह से ठाकुर जाति के मृतक एक व्यक्ति को मुआवज़ा दिया गया, जबकि वह व्यक्ति खुद हिंसा करने के लिए शब्बीरपुर आया था जिसने रविदास मंदिर में ना सिर्फ तोड़-फोड़ की बल्कि रविदास की मूर्ति पर पेशाब करके दरिंदगी की। लेकिन उन दलित परिवारों को अभी तक कोई मुआवज़ा नही दिया गया है जिनके घर बार जल गए और जो आज भी रविदास मंदिर में शरण लिए हुए हैं। जब शब्बीरपुर जल रहा था तो ठाकुरों ने फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को शब्बीर पुर के अंदर नही जाने दिया था लेकिन प्रशासन उन्हें मास्टर माइंड मानता। दलितों के घरों में बल्कि पूरे गांव में आगजनी की गई जबकि ठाकुर बिरादरी का एक भी घर जला हुआ नही दिखा और ना ही कोई तोड़फोड़ दिखी, तो क्या इससे ये साफ नही कि दंगाई दलितों के घरों में घुसे और दलितों पर हमला किया। विभिन्न गांवों की घेराबंदी की गई लेकिन ठाकुरों के गांवो में कोई फोर्स नहीं, जबकि अब तक दलितों ने सिर्फ़ इंसाफ़ के लिए प्रोटेस्ट किया और ठाकुर बिरादरी के लोगों ने हजारों की संख्या में तलवारें लेकर हमला किया, तो फिर प्रशासन और पुलिस को दलित कैसे हमलावर और मास्टर माइंड दिख रहे हैं। इंसाफ के लिए खड़े होने वाले दलित आंदोलनकारियों पर ईनाम रखकर पूरे मामले और आंदोलन को क्रिमिनलाइज़ किया जा रहा है, अगर ऐसा नही है तो 20 अप्रैल को हुई घटना के बाद जिन भाजपा के लोगों ने एसएसपी के घर पर हमला किया उनके खिलाफ पुलिस ने क्या किया। उनके खिलाफ ईनाम क्यों घोषित नही किए। जबकि वो पुलिस की आंखों के सामने खुले घूम रहे हैं और मंत्रियों के साथ खड़े होकर योगा कर रहे हैं।