आजकल
बढ़ती बेरोजगारी को लेकर पीएम मोदी आलोचकों के निशाने पर हैं। पिछले दिनों ज़ी
न्यूज़ चैनल पर लिए गए इंटरव्यू में जब एंकर सुधीर चौधरी ने सरकार द्वारा किए गए रोजगार
के अवसर पैदा करने के वादे के मामले पर सवाल किया तब उन्होंने इंटरव्यू के दौरान
कहा था कि अगर कोई पकौड़े वाला दिन में दो सौ रुपए कमाता है तो क्या ये रोजगार
नहीं है? यह भी कि पकौड़े बेचना भी एक बेहतर रोजगार होता है। सिर्फ नौकरी हीं रोजगार का पैमाना नहीं हो सकता।
मोदी जी ने आगे कहा कि दस करोड़ लोगों ने मुद्रा योजना का लाभ लिया है और चार लाख
करोड़ रुपए इनको दिया जा रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें से 3 करोड़ लोग वह हैं जिन्होंने पहले कभी
भी बैंक से एक रुपया भी नहीं लिया था। इसका मतलब यह है कि यह नए व्यवसायी हैं। कोई
व्यक्ति पैसा लेता है, एक दुकान भी चलाता है तो वह खुद तो
रोजगार पाता ही है एक दूसरे व्यक्ति को भी रोजगार का अवसर देता है, क्या इसको रोजगार मानेंगे कि नहीं
मानेंगे? अब कोई मोदी जी से पूछे कि रोजगार मजदूरों के लिए होता है या फिर
व्यवसायियों के लिए.... रोजगार का सीधा संबन्ध मजदूरों से होता है न कि व्यवसायी
का। दरअसल प्रधानमंत्री जी यह सिद्ध करना चाह रहे थे कि अगर कोई पकौड़े बेचने का
काम करता है तो वह रोजगार सरकार द्वारा ही उपलब्ध कराया गया रोजगार है।
पीएम
मोदी द्वारा पकौड़े की दुकान लगाने को रोजगार बताने के बाद से सोशल मीडिया पर उनका
जमकर मजाक उड़ाया जा रहा है। इसी बीच, पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने पीएम
मोदी पर उनकी पकौड़े वाली बात को लेकर हमला बोला है कि एक 'चायवाला' ही 'पकौड़े बेचने' का सुझाव दे सकता है। कोई अर्थशास्त्री
ऐसा सुझाव नहीं दे सकता।
विदित हो कि शुक्रवार की रात साल 2018 का प्रधानमंत्री मोदी ने पहला
इंटरव्यू हिंदी चैनल जी न्यूज को दिया। टीवी पत्रकार सुधीर चौधरी को दिए इस
इंटरव्यू में पीएम मोदी ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय मामलों से लेकर कूटनीति
और रोजगार तक के मुद्दों पर खुलकर बातें की। सोशल मीडिया पर उनकी यह खास बातचीत का
वीडियो छाया हुआ है। ट्विटर यूजर्स का एक धड़ा इस इंटरव्यू के लिए पीएम मोदी के
साथ सुधीर चौधरी को भी ट्रोल कर रहा है। कुछ लोग कह रहे हैं कि जी न्यूज में तो
इंटरव्यू दे दिया, अब जरा एनडीटीवी में रवीश कुमार को भी समय दे दीजिए।
वरिष्ट
पत्रकार अभिसार शर्मा का कहना है कि प्रधानमंत्री जी ने इंटरव्यू केवल उन्हीं दो
चैनल्स को दिया जो किसी न किसी प्रकार उनके अपने हैं। वो आगे कहते हैं कि इन दोनों
साक्षात्कारों में संलिप्त दोनों पत्रकारों द्वारा की गई चाटुकारिता भी तो न्यूनतम
स्तर की रही। मोदी जी कोसते रहते हैं कि देश में जो तनाव बढ़ रहा है वह पड़ोसी देशों
के कारण बढ़ रहा है। कोई मोदी जी से पूछे कि करणी सेना किसकी उपज है। क्या देश में
आंतरिक कलह का कारण करणी सेना और आरएसएस नहीं ? हमारे प्रधानमंत्री जी देश के बाहर
तो खूब बोलते हैं किंतु देश में आकर मौनवृत साध लेते हैं। देश के भीतर के आतंकवाद
पर क्यों कुछ नहीं बोलते? जब विपक्ष में तो रात और दिन बोलते ही रहते थे। विपक्ष
में रहकर तत्कालीन सरकार के प्रस्तावों .... चाहे एफडीआई का मसला था या जीएसटी का,
या फिर आधार कार्ड का, जमकर विरोध करते थे किंतु सरकार में आते ही वो पुराने सारे
प्रस्ताव मोदी जी के लाभकारी हो गए।
कोई
कह रहा है कि देश यह जानना चाह रहा है कि पीएम मोदी एनडीटीवी को कब इंटरव्यू देंगे।
एनडीटीवी पर रवीश के साथ ही क्यों घबराते हैं। कई कमेंटस् में लोगों ने सुधीर
चौधरी पर भी तंज कसा है। सुधीर की चुप्पी से लग रहा था कि पीएम मोदी जी जैसे केवल
अपनी बात कहने आए थे...सुधीर से कुछ भी सवाल करते नहीं बना। पीएम महोदय ने अपनी
बात कही और काम खत्म। किंतु लोग पूछ रहे हैं कि क्या देश के करोड़ो युवाओं ने
पकौड़े बेचने के लिए ही मोदी जी को वोट दिया था।
दिल्ली
के कनॉट प्लेस में बेरोजगार युवाओं ने ‘पकौड़ा रोज़गार अभियान’ चला कर पीएम मोदी
द्वारा दिये गये बयान की निंदा की। इस प्रदर्शन में पढ़े लिखे बेरोज़गार युवाओं ने
हिस्सा लेकर पीएम मोदी को सख्त संदेश दिया। स्पीच देते हुए एक व्यक्ति ने कहा, ‘पकौड़े बेचना राष्ट्रवाद है और
बेरोज़गारी की समस्या का समाधान है। अगर आप बेरोज़गार हैं, डिग्री धारक हैं, बड़ी-बड़ी डिग्रियां आपके पास हैं और सरकार आपको
रोज़गार नही दे रही है...प्रधानमंत्री जी का सजेशन हैं कि आप लोग पकोड़े बेचकर
रोज़गार बना सकते हैं.….सजेशन देना क्या कम बात है?’
25 जनवरी के हिन्दुस्तान समचार पत्र में राजेन्द्र धोड़पकर जी जनता के तन में नश्तर
चुभोते हैं कि इस पकौड़ा परियोजना से
किसानों का भी भला होगा, क्योंकि इसमें टनों बेसन लगेगा, जिससे चने का उत्पादन बढ़ेगा। प्याज के पकौड़े बनेंगे, सो प्याज की मांग बढ़ेगी। गोभी, बैंगन, पालक वगैरह के पकौड़ो से सब्जी उगाने
वाले किसानों को काम मिलेगा। तेल की मांग बढे़गी, साथ ही लाखों कढ़ाई, कलछियों के बनने से इस्पात उद्योग का
संकट खत्म हो जाएगा। इस तरह पकौड़े बेचने, प्लेटें धोने वगैरह में भी करोड़़ों लोगों
के लिए रोजगार पैदा होंगे। दुनिया वालो, देखते रहो ! वह दिन दूर नहीं, जब हम दुनिया को टनों पकौड़ों से लाद
देंगे।
मुझे
यह समझ में आया कि ‘मेक इन इंडिया’ के तहत पकौड़े बनाने हैं। दरअसल, यह एक पकौड़े बनाने की विराट परियोजना
है। यह बात मुझे अच्छी भी लगी, क्योंकि पकौडे़ बनाने के बहुत सारे फायदे हैं। अब पहला फायदा तो यही
है कि यह पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से चल सकने वाली परियोजना है। फिर इसमें बहुत
कौशल की जरूरत भी नहीं है, कम पढ़े-लिखे लोगों को भी इसमें बड़ी संख्या में काम मिल सकता है। एक
बात और कि मेक इन इंडिया परियोजना के तहत अब पकौड़ बनाने के विधि सिखाने के लिए
अनेक विश्वविद्यालय भी तो खोले जा सकते हैं।
लेखक: तेजपाल
सिंह तेज (जन्म 1949) की गजल, कविता, और विचार की कई किताबें प्रकाशित हैं- दृष्टिकोण, ट्रैफिक जाम है, गुजरा हूँ जिधर
से आदि ( गजल संग्रह), बेताल दृष्टि, पुश्तैनी पीड़ा
आदि (कविता संग्रह), रुन-झुन, खेल-खेल में आदि ( बालगीत), कहाँ गई वो दिल्ली वाली ( शब्द चित्र), दो निबन्ध संग्रह और अन्य। तेजपाल सिंह साप्ताहिक पत्र ग्रीन
सत्ता के साहित्य संपादक, चर्चित पत्रिका
अपेक्षा के उपसंपादक, आजीवक विजन के प्रधान संपादक तथा अधिकार दर्पण नामक
त्रैमासिक के संपादक रहे हैं। स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर आप इन दिनों
स्वतंत्र लेखन के रत हैं। हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार ( 1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से सम्मानित किए
जा चुके हैं।
sucheta
2018-02-03"Chay k sath pakoda bahut jruri h qki , pakode k bina chay adhuri h"