गणतंत्र दिवस हो
और बाबा साहब को याद ना किया जाए ये तो सही
नहीं है। क्या आपको नहीं लगता कि बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर को याद किए बिना गणतंत्र
दिवस अधूरा है। भारतीय संविधान के रचियता, जिन्होंने भारत को गणतंत्र दिया । उन्हे
सिर्फ दलितों के नेता तक ही सीमित करके रख देना एक बहुत बड़ा अपराध है, जिसके लिए
इतिहास आजादी के बाद की सवर्ण मानसिकता वाली सरकारों को कभी माफ नहीं करेगा।
क्योंकि सवर्णवादी मानसकिता के चलते देश का जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई शायद ही
कभी हो पाए ।
आज जबकि पूरा
विश्व बाबा साहब के पद चिन्हों की ओर अग्रसर हो रहा है, वहीं भारत में आज भी वो ईमानदार
कोशिश नहीं दिखती, जिसमें बाबा साहब की विरासत को नई पीढ़ियों तक पहुंचाया जाए । बाबा साहब के
विचारों को ईमानदारी से आत्मसात किया जाता तो आज के भारत की तस्वीर बहुत सुंदर बनी
दिखती।
ये बाबा साहब की
दूरदृष्टि ही थी कि जिन मुद्दों को भारतीय राजनीति में जगह पाने में दशकों लग गए, बाबा साहब उन मुद्दों को स्वतंत्रता आंदोलन के समय ही प्रमुखता
से उठा रहे थे। आज अंबेडकर को अपना कहने के लिए होड़ लगी हुई है, सभी राजनीतिक
पार्टियां अपने स्वार्थ के लिए उनका नाम अपने साथ रखने को मजबूर हैं।
संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के तौर पर संविधान सभा
में वाद-विवाद को समाप्त करते हुए बाबा साहेब ने कहा था कि '26 जनवरी, 1950 को हम
अंतर्विरोधों के जीवन में प्रवेश करेंगे। राजनीति
में समानता होगी तथा सामाजिक और आर्थिक जीवन में असमानता होगी।
राजनीति में हम 'एक व्यक्ति एक मत' और 'एक मत एक आदर्श' के
सिद्धांत को मान्यता देंगे। हमारी
सामाजिक और आर्थिक संरचना के कारण हम हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन में एक व्यक्ति
एक आदर्श के सिद्धांत को नकारेंगे, कब तक हम इन अंतर्विरोधों का जीवन जिएंगे? कब तक हम हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन में समानता को नकारते
रहेंगे? अगर लंबे समय तक ऐसा किया गया तो हम अपने राजनैतिक लोकतंत्र को
खतरे में डाल देंगे, हमें जल्द से जल्द इस अंतर्विरोध को समाप्त करना चाहिए
वरना असमानता से पीड़ित लोग उस राजनैतिक लोकतंत्र की संरचना को ध्वस्त कर देंगे
जिसे सभा ने बड़ी कठिनाई से तैयार किया है, कैसे कई हजारों जातियों में विभाजित
लोगों का एक राष्ट्र हो सकता है?' ।
वर्तमान दौर में कुछ लोग भारतीय संविधान पर टेड़ी नज़र रखे हुए हैं। और गाहे बगाहे सरकार के नुमाइंदे
संविधान पर गलत बयानी करते रहते हैं। और संविधान को बदलने की बात को हवा देते रहते
हैं। लेकिन आज जो इन लोगों से खतरा महसूस
नहीं कर रहे हैं भविष्य के खतरे उनकी पीढ़ियों को भी नहीं बख्शेंगे।